न्यायाधीश लोग नकली बालों की टोपी (wig) क्यों पहनते थे? अब क्यों नहीं पहनते हैं। कब से पहनना बन्द किया? – GK in Hindi

GK in Hindi आपने पुरानी फिल्मों या फिर ऐतिहासिक फोटो में देखा होगा। कोर्ट रूम के अंदर केस की सुनवाई करते समय न्यायधीश सिर पर सफेद बालों से बनी हुई विशेष प्रकार की टोपी पहनते थे। भारत में भी स्वतंत्रता के बाद सन 1961 तक इस टोपी को पहना गया। सवाल यह है कि न्यायधीश इस प्रकार की टोपी क्यों पहनते थे। क्या सिर्फ फैशन था या फिर कोई लॉजिक भी था। आइए जानते हैं:-
न्यायाधीशों की जिस टोपी की अपन बात कर रहे हैं उसे peruke (पेरूक) कहते हैं। पेरुक लंबे समय तक दुनिया भर में न्यायाधीशों की पहचान रहा है। इसके पीछे कई तर्क और एक मजेदार कहानी भी है। तर्क यह है कि पेरुक न्यायाधीशों की यूनिफार्म का हिस्सा थी। यूनिफॉर्म हमेशा व्यक्तिगत पहचान को न्यूनतम और सामूहिक पहचान को प्रकट करती है। डायस पर बैठा हुआ न्यायधीश आसानी से पहचान में नहीं आता था। इसके कारण न्यायाधीशों के व्यक्तिगत जीवन पर खतरा बहुत कम हो गया था और वह स्वतंत्रता पूर्वक न्याय कर पाते थे। यूनिफॉर्म में होने के कारण उन्हें हमेशा यह याद रहता था कि वह एक व्यक्ति नहीं बल्कि न्यायधीश हैं। जिस प्रकार वर्दी पहनने पर सैनिक का उत्साह बढ़ जाता है। उसी प्रकार पेरुक पहनने पर न्याय के प्रति प्रतिबद्धता बढ़ जाती थी।
कहा जाता है कि 17वीं शताब्दी तक ज्यादातर न्यायाधीश छोटे बाल और दाढ़ी रखते थे। किंग चार्ल्स सेकंड ने पेरुक पहनने की परंपरा शुरू की। कहा जाता है कि सिफीलिस की बीमारी के कारण वह गंजे हो गए थे। इसलिए उन्होंने अपने लिए एक विशेष प्रकार की विग बनवाई। यह सामान्य बालों वाली विग से बहुत अलग थी। क्योंकि इसे किंग चार्ल्स द्वारा पहना गया इसलिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गई। सभी न्यायधीश उनका अनुसरण करते हुए इसे पहनने लगे। बाद में इसे peruke नाम दिया गया और न्यायाधीश की यूनिफॉर्म में शामिल किया गया।
भारत में सन् 1961 में जब एडवोकेट एक्ट बना तब peruke पहनने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया। –