भोपाल – चार राज्यों – मध्यभारत, विंध्य प्रदेश, भोपाल रियासत और तत्कालीन मध्य प्रदेश (सेंट्रल प्रोविन्स व बरार का शेष हिस्सा) को मिलाकर 1 नवंबर 1956 को मप्र बना। इसके बाद विधानसभा का पहला सत्र 18 से 20 दिसंबर 1956 तक हमीदिया कॉलेज स्थित मिंटो हॉल में हुआ। शुरुआत ही तीखी बहस से हुई। तत्कालीन गवर्नर डॉ. पट्टाभि सीतारामैया के अभिभाषण में डकैतों के खात्मे और कानून-व्यवस्था का साफ जिक्र नहीं था। इसी मुद्दे पर सदन गरमाया। दोबारा शपथ को लेकर भी विवाद हुआ। श्रीनिवास तिवारी, चंद्रप्रताप तिवारी, लक्ष्मीनारायण गुप्त, हीरालाल शर्मा, सूर्यदेव शर्मा और जमुना देवी ने कुंजीलाल दुबे के सामने सरकार को घेरा। लंबी बहस के बाद मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल ने कहा- मप्र का भविष्य उज्ज्वल है, प्रदेश मालामाल होगा।
गवर्नर के कृतज्ञता ज्ञापन पर बहस, बेबाकी के साथ किसने क्या कहा था
पहले सत्र की बहस में चंद्रप्रताप तिवारी ने विलय को लेकर तीखा सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि गवर्नर शांतिपूर्ण विलय की बात कर रहे हैं, जबकि हकीकत अलग है। बंबई (अब मुंबई) में सैकड़ों लोगों का खून बहा, होटलों में बैठे लोगों पर गोलियां चलीं। विंध्य प्रदेश विधानसभा में घुसकर मंत्रियों को पीटा गया? विलीन राज्यों को बराबरी नहीं मिल रही। पुराने मप्र को विजेता की तरह पेश किया जा रहा है। भोपाल आए विंध्य प्रदेश के कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें कुत्ते-बिल्लियों की तरह देखा जा रहा है।’
मप्र की पहली विधानसभा में 288 सदस्य थे, अब 230 हैं
भोपाल रियासत के 30 मिलाकर इसमें 288 सदस्य थे। वर्ष 1977 में संख्या 320 हुई। 2000 में विभाजन के बाद 90 विधायक छत्तीसगढ़ में चले गए। मप्र में 230 ही रह गए।
आज विस में विशेष सत्र
मप्र विधानसभा की पहली बैठक के 69 वर्ष पर बुधवार को विशेष सत्र आयोजित किया गया है। इस सत्र में सरकार विकसित, आत्मनिर्भर मप्र का विजन रखेगी। सत्ता- विपक्ष के 12-12 विधायक अर्थव्यवस्था, रोजगार और 2047 के लक्ष्यों पर चर्चा करेंगे।








