बैतूल जिले के पाथाखेड़ा में एक दशक से ज्यादा समय तक चले ऑनर किलिंग केस में आखिरकार न्याय की गूंज सुनाई दी। सोमवार को कोर्ट ने 14 वर्षीय छात्रा कंचन कुशवाह की हत्या के मामले में पिता समेत छह सदस्यों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। यह फैसला उस हत्याकांड पर पड़ा अंतिम पर्दा साबित हुआ जिसने 2014 में पूरे मध्यप्रदेश को हिला दिया था।
घटना की पूरी कहानी
कंचन का शव 1 जनवरी 2014 को उसके ही फूफा के घर के बाथरूम में संदिग्ध परिस्थितियों में जला हुआ पाया गया था। परिवार ने इसे आत्महत्या बताने की कोशिश की, लेकिन दरवाजे के बंद न होने और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने उनकी दलीलों को झूठा साबित कर दिया। मेडिकल जांच में सामने आया कि नौवीं कक्षा की यह छात्रा मौत से पहले गला दबाकर मारी गई थी और उसके बाद शव को जलाकर साक्ष्य मिटाने की कोशिश की गई थी।
कोर्ट की कार्रवाई और फैसले की अहमियत
प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश की अदालत में चले इस लंबे मुकदमे में 70 पड़ोसियों के बयान दर्ज किए गए। किसी भी गवाह ने बाहरी व्यक्ति की मौजूदगी नहीं बताई, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वारदात में केवल परिवार के लोग शामिल थे।
अभियोजन पक्ष की दलीलों को स्वीकारते हुए अदालत ने कंचन के पिता सुरेंद्र प्रसाद कुशवाह, दादी गीता कुशवाह, दीपक सिंह और उनकी पत्नी राधिका, ओमप्रकाश और लक्ष्मण को दोषी करार दिया। सभी को हत्या और आपराधिक साजिश (धारा 302, 120-बी) में उम्रकैद और साक्ष्य छिपाने (धारा 201) में सात साल कैद व जुर्माने की अतिरिक्त सजा सुनाई गई।
जांच में आई चुनौतियां
इस केस को शुरुआत से ही आरुषि-हेमराज हत्याकांड जैसी पेचीदगियों वाला माना गया। एक ओर परिवार लगातार पुलिस पर दबाव बनाता और जांच पर सवाल उठाता रहा, वहीं दूसरी ओर जांच अधिकारी सुरेंद्र नाथ यादव और उनकी टीम ने वैज्ञानिक सबूतों और गवाहियों से सच को सामने लाया। मुख्य आरोपी माने गए फूफा जोगेंद्र की सुनवाई के दौरान मौत हो गई, जबकि एक अन्य महिला आरोपी प्रमाणों के अभाव में बरी कर दी गई।








