सीधी जिले के सोन घड़ियाल अभ्यारण में हुई एक घटना ने संरक्षण प्रयासों पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां अभ्यारण में मौजूद एकमात्र नर घड़ियाल की मौत हो गई। यह वही घड़ियाल था जिसे लगभग नौ महीने पहले चंबल नदी से विशेष रूप से प्रजनन के लिए लाया गया था। उसकी अचानक हुई मौत से न केवल विभाग बल्कि पर्यावरण संरक्षण से जुड़े सभी वर्गों में निराशा की लहर है।
बारिश के बहाव में बहकर पहुँचा चोपन
जुलाई महीने में भारी बारिश के दौरान यह नर घड़ियाल सोन नदी के तेज बहाव के साथ बहते हुए उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के चोपन इलाके तक जा पहुँचा था। उसके शरीर पर लगाए गए रेडियो कॉलर से लोकेशन की जानकारी मिल जाने के बावजूद विभाग समय रहते सक्रिय नहीं हुआ। नतीजतन कई हफ्तों तक वह नदी में ही भटकता रहा।
रेस्क्यू के दौरान मौत
वन विभाग ने अंततः मंगलवार रात उसे चोपन से रेस्क्यू कर सीधी लाने में सफलता पाई। लेकिन बड़े अफसोस की बात यह रही कि जब उसे वाहन से उतारा जा रहा था, तभी वह मृत पाया गया। अधिकारियों का कहना है कि लंबी दूरी के दबाव और लंबे समय से उपेक्षित रहने के कारण उसकी स्थिति बिगड़ गई थी।
संरक्षण प्रयास अधर में
विशेषज्ञ मानते हैं कि नर घड़ियाल को प्रजनन लायक बनने में करीब 25 साल लगते हैं। सोन अभ्यारण में लंबे समय से घड़ियालों का प्राकृतिक प्रजनन रुका हुआ था और यही कारण रहा कि चंबल से नर घड़ियाल लाकर संरक्षण की नई कोशिश शुरू की गई थी। अब उसकी मौत से यह पूरा प्रयास अधर में लटक गया है।
प्रशासनिक लापरवाही के आरोप
स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस घटना को प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा बताया है। उनका कहना है कि कॉलर से लोकेशन मिलने के बावजूद तत्काल कार्रवाई न होना गंभीर चूक है, जिसने घड़ियाल की जान ले ली। यह मामला जैव विविधता और संरक्षण नीतियों पर गहरी चोट माना जा रहा है।
आगे की चुनौती
अब विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वह इस अपूरणीय क्षति की भरपाई कैसे करेगा। यदि जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए तो सोन अभ्यारण केवल नाममात्र का केंद्र बनकर रह जाएगा और दुर्लभ घड़ियाल प्रजाति के संरक्षण का सपना अधूरा ही रह जाएगा।








