गायब हो गए मददगार, जो मांगने पहुंचते थे घरों पर वोट, घरों में दुबक गए नेता

सत्ता के आगे विपक्षी नेता नतमस्तक हो गए। प्रशासन और भाजपा के खिलाफ सिर नहीं उठा पा रहे हैं। उन्हें एफआईआर और पिटाई का डर सताने लगा है। यह वही नेता है तो जनता को हक दिलाने का वायदा करते हैं और अब प्रशासन का विरोध तक करने से डर रहे हैं। घरों में दुबक कर बैठे हैं। सिर्फ वाट्सएप और पत्र लिखने तक ही विरोध सिमट कर रह गया है। राजनीतिक और जनआंदोलन गर्त में चली गई है। अब कोई भी विपक्षी नेता आवाज उठाने वाला नहीं रह गया है। कांग्रेस से लेकर सपा और बसपा के नेताओं ने प्रशासन और सत्ताधारी पार्टी के सामने सरेंडर कर दिया है। जनता पर आदेश और निर्देश थोपे जा रहे हैं लेकिन कोई विरोध करने के लिए आगे नहीं आ रहा है। सत्ताधारी पार्टी खुलेआम नियम तोड़ रही है लेकिन विपक्ष खामोश बैठा है। खुलकर विरोध करने की भी हिमत नहीं जुटा पा रहा है। हद तो यह है कि अपने लोगों की मदद करने को भी विपक्ष के नेता सामने नहीं आ रहे हैं। सभी नेता घरों में हैं या फिर गांव में अज्ञातवास पर चले गए हैं। सभी को कोरोना के खत्म होने और लाकडाउन खुलने का इंतजार है। इस बुरे वत में इन नेताओं की भी काबलियत का पता चल रहा है। विपक्ष के नेताओं को पुलिस के डंडे और एफआईआर से डर लगने लगा है। हद तो यह है कि यह वही नेता हैं जो 15 महीनों तक सत्ता पर रहे और कलेटर, एसपी को उंगलियों पर नचाते थे। यह सिर्फ कांग्रेस की हालत नहीं है। सपा और बसपा के नेताओं ने भी राजनीति और नेता गिरी से दूरी बना ली है।