उत्तरकाशी की धराली घाटी—जहां कभी सुबहें बर्फीली हवा और सेब के बागानों की खुशबू से आबाद होती थीं—शुक्रवार को सिर्फ 30 सेकेंड के प्रलय ने सबकुछ बदल दिया। बादल फटने की भीषण घटनाओं की फेहरिस्त में ताज़ा हादसा धराली गाँव में दर्ज हो गया, जब शांत वादियां अचानक चीख़-पुकार, तबाही और आंसुओं की गवाह बन गईं।
चंद लम्हों में उजड़ गई ज़िंदगियां
आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादलों ने अचानक जिंदगी का रुख मोड़ दिया। सुबह-दोपहर के बीच की उस घड़ी में जब गांव वाले रोज़मर्रा के काम में जुटे थे, बच्चे अपने खेल में मगन थे, सैलानी स्थानीय चाय-परांठे का मज़ा ले रहे थे, तभी सब कुछ ठहर गया। एक तेज़ गड़गड़ाहट के साथ काला सैलाब उमड़ पड़ा—हरियाली, बाग-बग़ीचे, घर-आंगन सबकुछ मिट्टी में दफ्न करता चला गया।

चीख़ती घाटी, भागते लोग
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, एक वीडियो में दर्ज हुआ कि कैसे “भागो-भागो!” की पुकार सुनाई दी, जब बेकाबू पानी और मलबे की दीवार सब कुछ रौंदती बढ़ती चली आ रही थी। लोग बेतहाशा भाग रहे थे—कई होटल, रेस्टोरेंट, घर और होम-स्टे एक झटके में बह गए। नदी किनारे खड़े लोग भी लाचार थे, सब जानते थे—अब वक्त बहुत कम बचा है।

सैलाब के आगे इंसानियत की जद्दोजहद
मलबे और तेज़ बहाव में फंसे लोग जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे। एक वीडियो में दिखा, कैसे एक व्यक्ति सैलाब में फंसकर ज़िंदगी और मौत के बीच की रेखा पर जूझ रहा था। पीछे खड़े ग्रामीणों की आवाज़—”शाबास, बहुत अच्छे, आगे बढ़ो!”—नाउम्मीदी के सन्नाटे में उम्मीद की एक लौ बन गई।

पहाड़ भी रो पड़ा: हर तरफ बर्बादी
जहां तक नजर गई, सिर्फ तबाही का मंज़र था। बुजुर्गों की आंखों में बसी उम्रभर की मेहनत, नए ज़ख्मों के साथ नम थी। घर, बागान, सड़कें—हर चिन्ह सिल्ट और मलबे में दफ्न। स्थानीय प्रशासन ने राहत-बचाव कार्य शुरू किया है, सेना और एनडीआरएफ की टीमें जुटी हैं, पर तबाही के निशान हर मोड़ पर स्पष्ट हैं।

प्रकृति का प्रहार—भविष्य के सवाल
धराली की यह त्रासदी हिमालयी इलाकों में आवृत्त होते पर्यावरणीय असंतुलन और जलवायु परिवर्तन की चिंता को और गहरा कर देती है। क्या लचर व्यवस्थाएं, अनियंत्रित निर्माण और ग्लोबल वार्मिंग आने वाले समय में ऐसी घटनाओं को और भयावह बनाएंगी?








