सुप्रीम कोर्ट नहीं सुनेगा ‘दलीलों पर दलीलें’ तय होगा बहस का वक्त

नई दिल्ली, ब्यूरो। सर्वोच्च न्यायलय ने एक अच्छी पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त समय सारणी के आवंटन की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ चेतावनी दी है कि अगर समय-सीमा का ख्याल नहीं रखा गया तो सुनवाई स्वत: अनिश्चितकाल के लिए टल जाएगी। ऐसा अमेरिका और इंग्लैंड के सुप्रीम कोर्ट में होता है। एक मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस आरएस रेड्डी की बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं- अभिषेक मनु सिंघवी और अरविंद दातर को यतिन ओझा की याचिका पर बहस के लिए आधे घंटे जबकि गुजरात हाई कोर्ट के वकील निखिल गोयल को एक घंटा और इंटरवीनर के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस सुंदरम को 15 मिनट का वक्त दिया। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, हम दशकों पुराने मामलों को लंबित रखकर ताजा मामलों पर वरिष्ठ वकीलों की घंटों-घंटों दलील को जायज कैसे ठहरा सकते हैं? हमें नहीं लगता कि यूके और यूएस के सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा कोई सिस्टम है जो वकीलों को घंटों बहस की अनुमति देता हो।
जस्टिस कौल ने कहा, यूएस सुप्रीम कोर्ट में वकील को सिर्फ जजमेंट का हवाला देने की अनुमति होती है, ना कि इसे पूरा पढ़ने की। लेकिन, यहां जज 20-20 जजमेंट का न केवल हवाला देते हैं बल्कि सभी आदेशों की कॉपी पढ़ते भी हैं। वकीलों दलील के लिए सर्वोत्तम आदेश का ही चयन करें और एक दलील के लिए सिर्फ एक जजमेंट का ही हवाला दें। वकील जजों से कहते हैं कि वो घड़ी देखकर 10 सेकंड में अपनी बात कह देंगे, लेकिन 10 मिनट ले लेते हैं।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए अपने ही एक सिंगल बेंच के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य के फैसले पर सवाल उठाया गया है। उन्होंने अपने सामने लंबित एक केस को डिविजन बेंच को ट्रांसफर करने पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और कोर्ट प्रशासन की आलोचना की थी। जस्टिस सब्यसाची ने कहा था कि इस तरह की प्रैक्टिस को बढ़ावा देना गलत है। कहा कि मुख्य न्यायाधीश के पास अधिकार अधिक हैं, लेकिन वे सर्वाधिकारी नहीं हैं।