Naxal Surrender – मध्यप्रदेश के बालाघाट में 10 हार्डकोर नक्सलियों ने CM मोहन यादव के सामने हथियार डाल ( Naxal Surrender ) दिए, जिनमें 4 महिला माओवादी भी शामिल हैं। जानिए किन-किन पर इनाम था, कौन-कौन से हथियार जमा किए गए और नक्सली सरेंडर पर क्या लाभ दे रही है सरकार की नई पुनर्वास नीति।
MP सरकार को नक्सलवाद के खात्मे ( Naxal Surrender ) की दिशा में बड़ी कामयाबी मिली है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के समक्ष बालाघाट जिले में 10 नक्सलवादियों ने आत्मसमर्पण किया है. खास बात यह है कि आत्मसमर्पित माओवादी दल में 4 महिला नक्सलवादी भी शामिल हैं.
समर्पित नक्सलवादियों में SZCM, ACM और PM पदों पर सक्रिय रहे कई खूंखार नक्सली भी हैं, जिन पर विभिन्न जिलों में हिंसा, धमकी, लूट और हथियारबंद वारदातों में शामिल होने के आरोप थे.
आत्मसमर्पण के दौरान नक्सलवादियों ने पुलिस के समक्ष भारी मात्रा में हथियार भी सौंपे. इनमें शामिल हैं. AK-47 राइफल – 02इंसास राइफल – 02SLR – 01सिंगल शॉट राइफल (SSR) – 02BGL सेल – 07वॉकी-टॉकी – 04
सरकार की नीतियों का असर
बालाघाट क्षेत्र लंबे समय से नक्सल गतिविधियों का केंद्र रहा है, लेकिन पिछले दो वर्षों में लगातार दबाव, विकास योजनाओं की पहुंच और पुनर्वास नीति के चलते नक्सलियों का हौसला कमजोर हुआ है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता प्रदेश को नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त ( Naxal Surrender ) करना है, और यह आत्मसमर्पण उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

10 आत्मसमर्पित नक्सलियों के नाम
सुंदेश उर्फ कबीर उर्फ सोमला सोड़ी पिता उंगा सोड़ी
टेको उर्फ ओड़ी उर्फ समयल पिता समरु ओड़ी
लालसिंग मरकाम उर्फ मंगरा उर्फ भोमा
शिलरी मरपी पिता योगा मरपी
सती उर्फ सावित्री अलामी पिता लख्मू माता चिन्को
नविन मुंगेर उर्फ हिद्मा पिता नागा माता बीगे
जयश्री उर्फ ललिता ओझम पिता समखु माता देवे
विक्रम उर्फ हिद्मा वड्डी पिता लक्ष्मा माता पीपे
जरीन उर्फ भूमिया मुक्का पिता अंरदन माता कोंसेरी
समर उर्फ मंगल उर्फ अबु अवतार पिता समु माता सुमरी
आगे की कार्यवाही
मध्य प्रदेश पुलिस और प्रशासन ने सभी आत्मसमर्पित नक्सलियों को राज्य की पुनर्वास नीति के तहत सुरक्षा, आवास, उपचार और पुनर्वास संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
कहां और कैसे हुआ आत्मसमर्पण
सूत्रों के मुताबिक, शनिवार देर रात गोपनीय बातचीत और मध्यप्रदेश पुलिस की स्पेशल यूनिट ‘हॉक फोर्स’ की मध्यस्थता के बाद नक्सली बालाघाट रेंज के आईजी के बंगले पहुंचे, जहां औपचारिक रूप से आत्मसमर्पण की प्रक्रिया पूरी की गई। रविवार को इन्हें पुलिस लाइन में लाकर मुख्यमंत्री मोहन यादव की मौजूदगी में सार्वजनिक रूप से हथियार डालने का मौका दिया गया, जिससे स्थानीय लोगों के बीच भी मजबूत संदेश गया कि सरकार नक्सलवाद खत्म करने के अपने मिशन पर गंभीर है।

बड़े नक्सली कमांडर और भारी हथियार बरामद
सरेंडर करने वालों में कन्हा-भोरमदेव डिविजन से जुड़े कई कुख्यात कैडर हैं, जिन पर हिंसा, धमकी, वसूली और सुरक्षाबलों पर हमलों के मामले दर्ज हैं। पुलिस के अनुसार, नक्सलियों ने आत्मसमर्पण के दौरान AK-47 राइफल, इंसास राइफल, SLR, सिंगल शॉट राइफल, बम लॉन्चर के सेल, वॉकी-टॉकी सेट सहित बड़ी मात्रा में गोला-बारूद और संचार उपकरण सुरक्षा बलों को सौंपे हैं, जिन्हें फॉरेंसिक और इंटेलिजेंस मैपिंग के लिए जब्त किया गया है।
सरकार की नीति और मोहन यादव का सख्त संदेश
सीएम मोहन यादव ने कार्यक्रम में साफ संदेश दिया कि राज्य में नक्सलवाद के लिए अब सिर्फ दो रास्ते हैं – “आत्मसमर्पण या पूरी तरह सफाया” और 2026 तक नक्सलवाद मुक्त मध्यप्रदेश बनाने का लक्ष्य दोहराया। उन्होंने कहा कि बीते महीनों में एनकाउंटर, सर्च ऑपरेशन और सख्त मॉनिटरिंग के साथ-साथ सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी विकास योजनाओं ने भी नक्सली संगठन की जड़ें कमजोर की हैं।
पुनर्वास नीति के तहत क्या मिलेंगे फायदे
आत्मसमर्पित सभी नक्सलियों को मध्यप्रदेश नक्सल आत्मसमर्पण, पुनर्वासन व राहत नीति 2023 के तहत सुरक्षा, अस्थायी आवास, चिकित्सा सुविधा और कानूनी सहायता दी जाएगी। इस नीति के अनुसार, सरेंडर करने वाले नक्सलियों को जमा कराए गए हथियारों की कैटेगरी और उन पर घोषित इनाम के आधार पर आर्थिक पैकेज, कौशल प्रशिक्षण, रोज़गार से जुड़ने के अवसर और जरूरत पड़ने पर पुलिस या अन्य सरकारी सेवाओं में समायोजन तक का प्रावधान है, बशर्ते उनका आपराधिक मूल्यांकन और आचरण संतोषजनक पाया जाए।
बालाघाट में नक्सलवाद का अंतिम दौर?
बालाघाट, मंडला से सटे जंगली और पहाड़ी इलाकों में 30–35 साल से सक्रिय नक्सली नेटवर्क अब तेजी से सिमटता दिख रहा है, क्योंकि हाल के महीनों में कई शीर्ष माओवादी या तो मारे गए हैं या सरेंडर की राह पर आए हैं। सुरक्षा एजेंसियां मान रही हैं कि यदि इसी तरह लगातार आत्मसमर्पण और विकास आधारित रणनीति जारी रही, तो मध्यप्रदेश नक्सल प्रभावित राज्यों की सूची से बाहर हो सकता है और स्थानीय युवाओं के लिए हिंसा की जगह मुख्यधारा की राह मजबूत होगी।







