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Hello Sir….आपकी जाति पूछेगी सरकार

Hello Sir….आपकी जाति पूछेगी सरकार…. पहलगाम हमले के बाद जनता में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्से के बीच सरकार ने जाति जनगणना की घोषणा करके चौंका दिया। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता मैं हुई केंद्रीय कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति ने आगामी जनगणना के साथ जाति की गिनती कराने का फैसला किया।

आजादी के बाद पहली बार सरकार घर-घर जाकर जाति पूछेगी। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया, वहीं, कांग्रेस सहित विपक्ष ने वर्षों पुरानी मांग की जीत कहा। ओबीसी वर्ग की बढ़ती प्रासंगिकता के बीच यह कदम भाजपा के नीतिगत परिवर्तन को दिखाता है। यह फैसला इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ है।

कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, ‘जनगणना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है, लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वे के नाम पर गैर-पारदर्शी तरीके से जाति गणना कराई, जिससे समाज में संदेह पैदा हुआ। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन जाति जनगणना को सियासी हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल करता रहा है।

राजनीतिक कारणों से सामाजिक ताना-बाना न बिगड़े, इसलिए जाति की गिनती उचित रहेगी।’ हालांकि जनगणना कब शुरू होगी, सरकार ने इसकी तारीख नहीं बताई। हर 10 साल में होने वाली जनगणना 2021 में कोविड-19 के चलते टल गई थी।

जाति जनगणना क्या है? कब शुरू हुई, कब बंद?

अंग्रेजी राज में 1881 से 1931 तक जनगणना में जाति गिनी जाती थी। आजादी के बाद जातिगत विभाजन के बढ़ने के डर से 1951 से इसे बंद कर दिया गया। इसके बाद जनगणना के साथ एससी-एसटी की जातिगत जानकारी दर्ज और प्रकाशित होती रही।

सामाजिक-आर्थिक, जाति जनगणना क्या थी?

2011 में यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में 25 करोड़ शहरी और ग्रामीण परिवारों का सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना सर्वे हुआ। 2012 के अंत तक डेटा मिला। 2013 तक प्रोसेसिंग नहीं हो पाई। 2014 में मोदी सरकार बनी। ग्रामीण भारत का डेटा जारी हुआ, पर जाति का नहीं। 2018 में सरकार ने कहा, डेटा में ‘गलतियां’ हैं। फिर 2021 में सुप्रीम कोर्ट में भी यही बात कही।

जाति जनगणना की मांग आखिर क्यों बढ़ रही थी ?

तीन कारण हैं। पहला- आरक्षण की नीति एक सदी पुराने आबादी आंकड़ों व अनुमानों पर आधारित हैं। अब साक्ष्य आधारित बनाने की जरूरत। दूसरा समाज की असल तस्वीर सामने आएगी। तीसरा- बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना सरकारें जाति सर्वे करवा चुकीं । इससे सियासी बवंडर बढ़ा। बिहार में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और ईबीसी (आर्थिक पिछड़ा वर्ग) की आबादी 63% से अधिक निकली। इससे सियासी नजरिया बदला।

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